युद्धों या हथियारबंद संघर्षों में गलत सूचनाओं का प्रसार, धारणाओं और विकल्पों के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। सोशल मीडिया, सूचनाओं और साथ ही दुष्प्रचार का भी, एक महत्त्वपूर्ण मंच साबित हुआ है जिसके ज़रिए, वैकल्पिक दृष्टिकोणों की उपलब्धता को सीमित करने की कोशिश होती है, जहाँ एल्गोरिदम की तकनीक, सूचनाओं की वांछित व्याख्याओं के लिए भी मीडिया उपभोक्ताओं को प्रेरित करती है। रूस-यूक्रेन युद्ध इस बात का एक बड़ा उदाहरण बनकर उभरा है कि कैसे सोशल मीडिया की सामग्रियों के माध्यम से, वैचारिक मूल्यों में छेड़छाड़ की कोशिश की जाती है। यह 'इश्यू ब्रीफ' उस विश्लेषण को भी सामने रखने की कोशिश करता है कि क्यों सोशल मीडिया के ज़रिए दुष्प्रचार का मुद्दा, दरअसल तकनीकी निर्धारणवाद की ही अगली कड़ी है।